Friday 22 April 2016

क्या भारत भी डाल सकता है चीन पर दबाव ?


हिंदी में एक मशहूर कथन है की शत्रु का शत्रु मित्र होता है और चीन इस कथन पर अमल कर रहा है।दरअसल चीन जानता है की भारत एशियाई मुल्कों में सबसे तेज़ी से तरक़्क़ी करने वाला मुल्क है जो आने वाले समय चीन का सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी भी साबित हो सकता है फिर वह चाहे व्यापार हो या सैन्य शक्ति।चीन पाकिस्तान को साधने तथा उसको भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने का काम करता रहा है।इसका सबसे ताज़ा उदाहरण हाल ही में देखने को मिला जब भारत ने पठानकोट हमलों तथा देश में और कई जगह आतंकी हमलों के दोषी जैश-ए-मुहम्मद के प्रमुख मसूद अज़हर पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबन्ध लगाने के लिए जब संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव पेश किया तब 15 देशों में से 14 देश इसके पक्ष में थे लेकिन चीन अकेला ऐसा देश था जो इसके विरोध में था और उसने अपने वि-टो का प्रयोग करते हुए इसे निष्प्रभावी कर दिया।चीन ने इस पर यह तर्क दिया कि मसूद अज़हर आतंकी होने के संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित मानदंडों को पूरा नहीं करता है, इसलिए उस पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया जा सकता. भारत ने इस पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया जरूर जाहिर की है, मगर उससे चीन पर कोई प्रभाव पड़ता नहीं दिख है।
दरअसल यह तो एक मौका है जब चीन का पाक प्रेम और भारत विरोध अंतर्राष्ट्रीय पटल पर सामने आया है. अन्यथा तो वो लम्बे समय से और विभिन्न स्तरों पर भारत के खिलाफ पाक का साथ देता रहा है. विगत दिनों चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पाकिस्तान दौरे के दौरान भी चीन का ऐसा ही कुछ रुख देखने को मिला था, जब उसने इस दौरे के दौरान भारत की तमाम आपत्तियों के बावजूद पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरने वाले 46 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर की शुरुआत कर दी थी.
इसके अलावा चीन की तरफ से पाकिस्तान को घोषित-अघोषित रूप से तमाम आर्थिक व तकनिकी सहयोग आदि मिलता रहता है. साथ ही, जम्मू-कश्मीर विवाद को लेकर भी चीन अकसर पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा होता रहा है और पाक अधिकृत कश्मीर में तो उसके सैनिकों की मौजूदगी की बात भी सामने आ चुकी है.वैसे तो भारत चीन के इस पाक प्रेम से वाकिफ है परन्तु यह नज़दीकियां नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से ज़्यादा दिख रही है।इसका मुख्य कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने विदेश निति को जिस तरह साधा है इसने चीन को भीतर ही भीतर परेशानी में डाल दिया है।वह फिर चाहें वो एशिया हो या युरोप मोदी भारतीय विदेश नीति को सब जगह साधने में पूर्णतः सफल रहे हैं.
एशिया के नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, मालदीव, जापान आदि देश हों, विश्व की द्वितीय महाशक्ति रूस हो या फिर यूरोप के फ़्रांस, जर्मनी हों अथवा स्वयं वैश्विक महाशक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका, इन सबके दौरों के जरिये प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले 10-11 महीनों के दौरान भारतीय विदेश नीति को एक नई ऊंचाई दी है. साथ ही इनमें से अधिकांश देशों के राष्ट्राध्यक्षों का भारत में आगमन भी हुआ है.
भारत की बढ़ती वैश्विक साख ने चीन को परेशान किया हुआ था कि तभी भारत के दबाव में आकर श्रीलंका ने चीन को अपने यहां बंदरगाह बनाने की इजाजत देने से इंकार कर दिया. वहीं दूसरी तरफ भारतीय प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी मॉरीशस और सेशेल्स में एक-एक द्वीप निर्माण की अनुमति प्राप्त कर लिए. इन बातों ने चीन को और परेशान कर के रख दिया.
कहीं न कहीं भारत की इन्हीं सब कूटनीतिक सफलताओं से भीतर ही भीतर बौखलाए चीन की बौखलाहट इन दिनों पाकिस्तान पर हो रही भारी मेहरबानी के रूप में सामने आ रही है.
सवाल यह उठता है की चीन-पाक का यह गठजोड़ भारत के लिया चिंताजनक है या नहीं ? 
सवाल यह भी उठता है की भारत चीन की ओर से हो रही हिमाकतों का  किस प्रकार जवाब दे भारत को अब कुछ इस तरह रवैया अपनाना होगा की सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।चीन ने हमेशा से भारत की और आक्रमक रवैया रखा है परंतु भारत ने हमेशा से अपना रवैया रक्षात्मक रखने में विश्वास रखा है।       
मगर अब समय बदल गया है तो भारत को अपने इस रक्षात्मक रुख में परिवर्तन लाना चाहिए. चीन के प्रति आक्रामक रुख अपनाते हुए भारत चाहे तो उसे उसीकी नीतियों के जरिये दबा सकता है. अब जैसे कि चीन-पाक गठजोड़ का प्रश्न है तो चीन के इस वार का प्रतिकार भारत जापान के रूप में कर सकता है. चूंकि, विगत कुछ वर्षों से चीन-जापान संबंधों में समुद्री द्वीपों को लेकर काफी खटास आई है. भारत इस स्थिति का लाभ लेते हुए जापान को अपनी ओर कर चीन को काफी हद तक परेशान कर सकता है.
इसके अलावा अन्य छोटे और कमजोर एशियाई देशों से अपने संबंधों को बेहतर कर तथा उनका समर्थन हासिल करके भी भारत चीन-पाक गठजोड़ की चीनी कूटनीति को जवाब दे सकता है. सुखद बात यह है कि मोदी सरकार के आने के बाद इस दिशा में कदम उठाए गए हैं, लेकिन जरूरत है कि इन संबंधों को और मजबूती दी जाए तथा कूटनीतिक दृष्टिकोण से इनका लाभ लेने के लिए कदम भी उठाए जाएं. ऐसे ही, जम्मू-कश्मीर मामले में चीन के हस्तक्षेप को जवाब देने के लिए भारत का सबसे उपयुक्त अस्त्र तिब्बत है. वैसे भी, तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा भारत से अत्यंत प्रभावित रहते आए हैं. ऐसे में, भारत को चाहिए कि वो दलाई लामा को अपने साथ जोड़कर चीनी नाराजगी की परवाह किए बगैर तिब्बत मामले को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाते हुए चीन पर दबाव बनाए कि वो तिब्बत को स्वतंत्र करे.

इसके अतिरिक्त तमाम और भी उपाय हो सकतें है जिसे भारत अपना सकता है और यह स्मरण रखे की विदेश निति में सबसे बड़ा राष्ट्रहित होता है।

Samyantak Malhotra

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